Thursday, November 29, 2012

ख्वाहिशों के दायरें 

 सन्नाटें दूर तलक केवल सुनाई देते रहते हैं 
मेरे ख्वाहिशों के दायरे में अब कोई नहीं रहता 
एक मजारे माहौल सा तैयार हो गया है 
वहाँ दफ्न है हर रूह की  जिंदा कोई नहीं रहता।

यहाँ हर कोने में कोई न कोई लम्हा कैद है 
कभी  जाता हूँ तो उन सब से मैं मिल के आता हूँ 
कुछ टूटे हैं, कुछ बिखरे हैं, कुछ बीमार बैठे हैं 
बेफिक्र है माली, उन्हें अब कोई नहीं चुनता।

कुछ दूर आगे खाली एक  मैदान रखा है
वहाँ मैं चीखता हूँ, डाटता हूँ, रो भी लेता हूँ
आवाजें दूर तलक जाके वैसे ही लौट आती हैं 
जो मैं कहता रहता हूँ उसे अब कोई नहीं सुनता।

वही पास में  झरने सा बहता वक़्त जा रहा है 
दावा है जिसका वो यहाँ सब सींच जाएगा 
कोई कैसे समझाए उसे अब उसकी बेबसता 
मिटते हैं छाप रेतों से, निशां कोई नही धुलता .

सन्नाटें दूर तलक केवल सुनाई देते रहते हैं 
मेरे ख्वाहिशों के दायरे में अब कोई नहीं रहता


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