Thursday, November 5, 2009

Aatmwiswaash..........



कमजोर हैं वो लोग जो लेते हैं सहारा भगवान् का,
मैं तो कहता हुं, तुम लो सहारा अपने अन्दर के इंसान का,

जो करोगे तुम वोही काम तुम्हारे आएगी,
ना आश्तिकता इसको बढ़ाएगा, न नास्तिकता इसको घटाएगी,

भगवान् है वो चीज़ जो इंसान ने मतलब के लिए बनायीं है,
पर है वो जहाँ के करता धरता, हर धर्म में यही बताई है,
तो कहाँ रहता है वो करता, जब कोई भूके पेट सोता है,
कहाँ रहता है वो करता, जब कोई गम में अपने रोता है.

तो कहते है लोग, ये तो पूर्व जन्म की कमाई है,
तो भैया, निम्नलिखित नियम भी तो तुम्ही ने हमें बताई है,
की हर जन्म का फैसला उसी जन्म में हो जाता है,
कोई मुझको बताये ये पूर्व जन्म का चक्कर फिर कैसे आता है.

जब बनाया हे सब कुछ उसने, तो पाप किसने बनाया है,
कोई किस्मत में अपने सुख, तो कोई दुःख क्यूँ लाया है,
तो कहते है लोग ये तो उसकी लीला उसकी प्रवृति है.
क्या इंसानों के बीच में भेद भाव येही उसकी संस्कृति है.

जब होते हैं हम सफल तो भगवान् बीच में आता है,
हमारी सफलता का सारा श्रेह अपने नाम ले जाता हे,
पर जब आती हे असफलता तो भगवान्  कहा छुप जाता है,
हमारी असफलता का श्रेह उसके नाम क्यूँ नहीं जाता है,

क्यूँ ना दोषी ठहराए हम उसे अपनी असफलता के लिए,
क्यूँ ना कटघरे में लाये हम उसे अपनी दुर्दसा के लिए,
तुम ही ने तो कहा है की,
उसके इजाज़त के बिना एक पत्ती नहीं हिल पाती है,
कोई मुझको कहे, फिर ये असफलता कैसे मिल जाती है,

तो कहते है लोग ये तो अपने कर्मो का परिणाम है,
तो जब सब कर्मो का ही चक्कर है तो भीच में क्यूँ भगवान् है,

इसलिए कहता हुं की भगवान् है वो चीज़ जो इंसान ने मतलब के लिए बनायीं है,
तुम कर्म करो सफलता मिलेगी यह बात लिखी लिखी है.....

Badlao......



ये क्या कर रहा मैं,
उसकी आह सुन रहा मैं,
मेरी आत्मा को किसने जगा दिया,
मेरे दिल को नादाँ बना दिया,
मैं तो सामाजिक जीव था,
क्यूँ? इन्सां मुझको बना दिया.

ये क्या कर रहा मैं,
सच्ची राह चुन रहा मैं,
मेरा इरादा किसने हिला दिया,
क्या मुझको मिला के पिला दिया,
मैं तो बस सच का पुजारी था,
क्यूँ? सच्चा मुझको बना दिया.

अरे ये क्या कर रहा मैं,
साबसे प्यार कर रहा मैं,
मेरी सिक्षा को किसने भुला दिया,
मुझमे से मुझको मिटा दिया,
मैं तो लक्ष्मी का संगी था,
क्यूँ? ब्रम्हा मुझको बना दिया.

ये क्या कर रहा मैं,
सबके ख्वाब बुन रहा मैं,
मुझे भगीरथ किसने बना दिया,
गंगा से मुझको मिला दिया,
मैं तो सपनो  का व्यापारी था,
ये मुझको किसने सुला दिया,

मैं तो सामाजिक जीव था,
क्यूँ? इन्सां मुझको बना दिया.

Ek Soch.....



बैतरनी के तट पे खड़ा, मैं खुद को उपाधि क्या दूंगा?

एक रोज भी ये दिन आएगा, मैं यादों में बस जाऊंगा,
अपने अनुभव की गठरी, ले ईशवर में मिल जाऊंगा,
उस रोज निभंधित जीवन का सारांश न जाने क्या दूंगा,
बैतरनी के तट पे खड़ा, मैं खुद को उपाधि क्या दूंगा?

जब मेरे कर्मों की बातें मुझसे ही पूछे जायेंगे,
तब मैं मौन के साथ खड़ा, पलकों पे भार उठाऊंगा,
जब चित्रगुप्त के पन्नो से इतिहास दुबारा झाकेगा,
मैं तट पर के हलकोरों से फिर अपनी खैर मानूँगा,

जब लाज छोढ़ कर जायेगी, और मौन भी खैर मनायेगा,
तक उन प्रशनो के उत्तर सा, मैं इस स्याही को क्या दूंगा,
बैतरनी के तट पे खड़ा, मैं खुद को उपाधि क्या दूंगा?

जब मेरे डगमग कदमो का इतिहास अस्तित्व में आएगा,
ये माया जाल में फसा हुआ प्राणी क्या कहने पायेगा,
क्या सीखा तुमने क्या सिखा गए,
जब ये सब उठ उठ पूछेंगे,

अपने अपराधो की स्वयं खड़ा,
मैं उनको गवाही क्या दूंगा,
बैतरनी के तट पे खड़ा, मैं खुद को उपाधि क्या दूंगा?






Wednesday, November 4, 2009

Journey....



तुम्हारे प्यार का है रंग जो सब कुछ बदल गया,
जो तुम हो मेरे संग तो सब कुछ बदल गया,

जी चाहता है थाम लू यूँ वक़्त को जकड के,
ओझल ना होने दूँ तुम्हे पल भर को भी नज़र से,

तुम्हारा साथ है तो देखो हर मंजर बदल गया,
ये धरती बदल गयी, वो अम्बर बदल गया,

है इरादा अंतिम सांस तक हर वादा निभाएंगे,
जो छोटा पड़े ये जीवन तो हम फिर से आयेंगे,

हजारो आशिकों के लिए तो बस दुनिया बदलती है,
हमारे प्यार के खातिर तो खुदा भी बदल गया.

Humsafar.....


देखो लौट रही है मौत भी तनहा  मेरे दरवाजे से,
कहती है, इस लाश को मैं क्या मारू पहले जिंदा इसे हो जाने दे.

ज़ख्म मेरे दिल का उसने महसूस कैसे कर लिया,
कही मौत ने भी ज़िन्दगी से इश्क तो नहीं कर लिया,

गर ऐसा है तो तहरो मौत दो जाम साथ में पीते हैं,
और नाम लेते हैं उनका, जो  हमारे बिना भी अब जी लेते हैं,

अरे ये क्या पहली बार देखा मौत भी आहें भरता है,
जिससे डरती है साड़ी दुनिया, वो अंजामे इश्क से डरता है.

सोचता हुं काश मेरा हमदम मौत जैसा होता,
कुछ भी होती उसकी फितरत, पर सिने में एक दिल होता.

कितने खुसनसीब होंगे वो लोग जिन्हें मौत गले लगता है,
कितना हसीं होगा वो सफ़र जब मौत सा हमसफ़र मिल जाता है.

Main Kyun Aakhir Gum Likhta hu.....

(image source: http://www.nohomers.net/)

सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं? 
जो आँखें चंचल हो सकती हैं, उन्हें भी नम लिखता हुं,
मैं भी कल्पना के उड़ान में था जीता,
पंख टूट गए तो अब केवल अनुभव लिखता हुं...
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?

सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
बसंत भूल के अब केवल पतझड़ लिखता हुं,
मैं भी पुष्पों के चादर पे था सोया हुआ,
सब सुख गए तो अब कांटो की चुभन लिखता हुं....
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?

सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
चहरे को छोढ़, इरादों का वर्णन  करता हुं ,
मैं भी तो चेहरों का आशिक ही हुआ करता था,
सब झूठे निकले तो अब केवल दर्पण लिखता हुं ....
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?  

सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
प्यार के रंगों को लेकर, अब स्वार्थ का चित्रण करता हुं,
जब दिल लिखा तब कहते थे, क्यूँ भ्रम लिखते हो?
जज्बात लिखें तो कहते हो, जीवन लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मै क्यूँ  केवल गम लिखता हुं?