(image source: http://www.nohomers.net/)
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
जो आँखें चंचल हो सकती हैं, उन्हें भी नम लिखता हुं,
मैं भी कल्पना के उड़ान में था जीता,
पंख टूट गए तो अब केवल अनुभव लिखता हुं...
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
बसंत भूल के अब केवल पतझड़ लिखता हुं,
मैं भी पुष्पों के चादर पे था सोया हुआ,
सब सुख गए तो अब कांटो की चुभन लिखता हुं....
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
चहरे को छोढ़, इरादों का वर्णन करता हुं ,
मैं भी तो चेहरों का आशिक ही हुआ करता था,
सब झूठे निकले तो अब केवल दर्पण लिखता हुं ....
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
प्यार के रंगों को लेकर, अब स्वार्थ का चित्रण करता हुं,
जब दिल लिखा तब कहते थे, क्यूँ भ्रम लिखते हो?
जज्बात लिखें तो कहते हो, जीवन लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मै क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मैं क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
प्यार के रंगों को लेकर, अब स्वार्थ का चित्रण करता हुं,
जब दिल लिखा तब कहते थे, क्यूँ भ्रम लिखते हो?
जज्बात लिखें तो कहते हो, जीवन लिखता हुं?
सब कहते हैं मुझसे, मै क्यूँ केवल गम लिखता हुं?
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