देखो लौट रही है मौत भी तनहा मेरे दरवाजे से,
कहती है, इस लाश को मैं क्या मारू पहले जिंदा इसे हो जाने दे.
ज़ख्म मेरे दिल का उसने महसूस कैसे कर लिया,
कही मौत ने भी ज़िन्दगी से इश्क तो नहीं कर लिया,
गर ऐसा है तो तहरो मौत दो जाम साथ में पीते हैं,
और नाम लेते हैं उनका, जो हमारे बिना भी अब जी लेते हैं,
अरे ये क्या पहली बार देखा मौत भी आहें भरता है,
जिससे डरती है साड़ी दुनिया, वो अंजामे इश्क से डरता है.
सोचता हुं काश मेरा हमदम मौत जैसा होता,
कुछ भी होती उसकी फितरत, पर सिने में एक दिल होता.
कितने खुसनसीब होंगे वो लोग जिन्हें मौत गले लगता है,
कितना हसीं होगा वो सफ़र जब मौत सा हमसफ़र मिल जाता है.
bechara DEVDAS!!!
ReplyDeleteawesome poems bhaiya
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